Hemant Soren कौन है?Hemant Soren एक बहुत बड़े राज्य का एक बहुचर्चित नेता है । जिन्होंने झारखंड राज्य के लिए बहुत काम किए है।उनके काम के लिए उन्हें झारखंड के लोग आज जानते है।उन्होंने झारखंड के लोगो के लिए कई ऐसे कार्य किए है जिन्हे लोग आज जानते भी नहीं है।
Hemant Soren कौन है: इस इलेक्शन में झारखंड मुख्यमंत्री कौन है इन 5 कारणों से पीछे रह गई बीजेपी
झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक भारतीय नेता है झारखंड राज्य के।जो अभी झारखंड के मुख्यमंत्री भी है।उन्होंने 2019 से 2024 तक और 2013 से 2014 तक झारखंड के 5वे मुख्यमंत्री रह चुके है।झारखंड में एक दल , झारखंड मुक्ति मोर्चा है, वो इसके कार्यकारी अध्यक्ष भी है।
हाइलाइट:
- झारखंड में इंडिया गठबंधन का बड़ी जीत , हेमंत सोरेन का जलवा बरकरार
- झारखंड में हेमंत ने 24 साल का रिकॉर्ड तोड़ा, इन 5 कारणों से पीछे रह गई बीजेपी
झारखंड में इंडिया गठबंधन का बड़ी जीत , हेमंत सोरेन का जलवा बरकरार
झारखंड में कथित आरोपों में जेल जा चुके जेएमएम नेता व राज्य के सीएम Hemant Soren ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर फिर से झारखंड में अपना परचम लहरा दिया है। जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी और सीपीएमएल जैसे बड़े बड़े डालो ने एक साथ हाथ मिलाकर चलने का फैसला किया और पिछले असेंबली चुनावो से आगे ले गएं।इन चुनावो में जहा एक ओर हेमंत का जलवा दिखा वही दूसरी ओर आदिवासी अस्मिता , मईया सम्मान व हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का दाव काम कर गया ।हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए है।
वही दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से जनसंख्यकी में बदलाब और हिंदू,मुस्लिम का मुद्दा काम नहीं करता दिखा।पहली बार झारखंड मे कोई सरकार सत्ता विरोधि माहौल के बाद भी प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी कर गई है।
झारखंड में हेमंत ने 24 साल का रिकॉर्ड तोड़ा,बीजेपी इन पांच कारणों से पीछे रह गई।
पहली बार झारखंड राज्य में 24 साल का सियासी रिकॉर्ड टूटता नजर आया है।हेमंत सोरेन को गठबंधन से पूर्ण बहुमत मिल रहा है और वह सत्ता में वापसी कर रहे हैं।हेमंत सरकार को झारखंड की 81 में से 50 सीटो पर बढ़त हासिल हुई है।
ऐसे में सवाल ये आ रहा है कि आखिर ये सब हुआ कैसे । बीजेपी ने अपनी पुरी ताकत झोंकने के बाद भी सत्ता में कैसे नही आ पाई? इस लेख में मैं आपको इन्हीं सवालों के जवाब दूंगा तो विस्तार से पढ़िए…..
1. मजबूत गठबंधन और क्षेत्रीय समर्थन
हेमंत सोरेन ने झारखंड में झामुमो, कांग्रेस, और राजद के गठबंधन को बेहतरीन तरीके से संभाला। यह गठबंधन राज्य के स्थानीय मुद्दों और जनता की जरूरतों पर फोकस करता नजर आया। इससे आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में हेमंत की पकड़ मजबूत हुई। गठबंधन ने 81 में से करीब 50 सीटों पर बढ़त बनाई, जिसमें से 10 सीटों पर बढ़त 10,000 वोटों से ज्यादा रही।
2. आदिवासी मतदाताओं का समर्थन
झारखंड की बड़ी आबादी आदिवासी समुदाय से है। हेमंत सोरेन ने इनकी समस्याओं, जैसे जमीन अधिकार, शिक्षा और रोजगार पर विशेष ध्यान दिया। उनके जनजातीय पृष्ठभूमि और उनके वादों ने आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर खींचा। बीजेपी सरकार पर आदिवासी हितों की अनदेखी का आरोप भी लगा, जिसने सोरेन को फायदा पहुंचाया।
3. बीजेपी की रणनीति की विफलता
बीजेपी ने झारखंड में कई मुद्दों पर कमजोर रणनीति अपनाई। राज्य के स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने से जनता उनसे दूर हो गई। इसके अलावा, मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जनता में असंतोष भी एक बड़ा कारण रहा।
4. रोजगार और स्थानीय विकास पर फोकस
हेमंत सोरेन ने बेरोजगारी और ग्रामीण विकास को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया। उन्होंने युवाओं को रोजगार देने और पलायन रोकने के लिए ठोस कदम उठाने का वादा किया। यह मुद्दा जनता के बीच प्रभावी रहा, जबकि बीजेपी इन विषयों पर ठोस वादा करने में नाकाम रही।
5. स्थानीय नेता बनाम बाहरी चेहरा
झारखंड में स्थानीय नेतृत्व की हमेशा अहमियत रही है। हेमंत सोरेन ने खुद को एक जनप्रिय और स्थानीय नेता के रूप में पेश किया, जो राज्य की जमीनी हकीकत को समझते हैं। इसके विपरीत, बीजेपी का फोकस केंद्रीय नेतृत्व पर रहा, जिससे स्थानीय स्तर पर पार्टी का जुड़ाव कमजोर पड़ा।
निष्कर्ष
झारखंड में हेमंत सोरेन ने इस जीत के साथ न केवल इतिहास रच दिया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि जनता की उम्मीदों को समझने और स्थानीय मुद्दों पर काम करने से बड़ी जीत हासिल की जा सकती है। बीजेपी के लिए यह हार निश्चित रूप से आत्मचिंतन का विषय है।